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कोरोना संकट में भारत की भूमिका

आशा है कि भारत सनातन संस्कृति के जीवन मूल्यों की दीपशिखा लेकर इस महामारी पर धैर्य, जागरुकता व संभावित उपचार जैसे प्रयासों से विजय प्राप्त कर दुनिया का मार्गदर्शन करेगा।

डाॅ. कुलवीर सिंह चौहान


चीन के वुहान प्रान्त में 31 दिसम्बर 2019 को पहचाने गए  कोविड-19 जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने '2019 n CoV' अर्थात 'कोरोना वायरस डिजीज-2019' नाम दिया है, से अब तक पूरी दुनिया में करीब 5 लाख लोग संक्रमित हैं और 22000 से अधिक लोग मारे गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण (Taxonomy)

समिति से नामित  SARS-COV-2 यानी   'कोविड-19' एक भयंकर महामारी का रुप ले चुके इस विषाणु जनित रोग के अब तक किसी कारगर आयुर्विज्ञान औषधि की खोज न हो पाने से सभी देशों में इसके बचाव के लिए सामाजिक दूरी (Social Distancing) को ही चिकित्साशास्त्रियों द्वारा एक मात्र उपाय बताया जा रहा है।परिणामस्वरुप लगभग सभी  देशों में फैल चुकी इस महामारी की व्यापकता रोकने के लिए इन देशों में आवागमन पर रोक के साथ घरों में रहने के निर्देश देकर देशव्यापी लाॅकडाउन जैसे उपाय किए गए हैं।

विशाल आबादी व संरचनात्मक चिकित्सा सुविधाओं के मामले में विकसित देशों की अपेक्षा कम क्षमता वाले भारत में इस महामारी का प्रसार वाकई चिंताजनक है।क्योंकि चीन, इटली और स्पेन के बाद अमेरिका जैसे श्रेष्ठ चिकित्सीय व आर्थिक सामर्थ्यवान देश भी इस आपदा के समक्ष अपने को असहाय पा रहें हैं। यहां तक कि ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा प्रमुखों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन के प्रमुख ने कहा कि ब्रिटेन के अस्पताल कोरोना संक्रमित मरीजों से भरे पड़े हैं। बावजूद इसके भारत अपनी सीमित संसाधन व दृढ़ इच्छाशक्ति वाले राजनीतिक नेतृत्व के चलते इस महामारी से कुशलतापूर्वक मुकाबला कर रहा है। भारत सरकार ने सुशासन के मानवतावादी सरोकारों के चलते, इटली, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे पश्चिमी व खाड़ी देशों में कोरोना से संक्रमित व संक्रमण के खतरे वाले फंसे सभी भारतीय नागरिकों को विशेष विमानों से संक्रमण के उच्च जोखिमों के बावजूद स्वदेश लाकर एक सम्यक् कर्तव्य का निर्वहन किया है। संकट की इस घड़ी में समस्त देशवासियों को पंथिक, भाषायी, प्रान्त व दलगत निष्ठाओं से परे राष्ट्रीय चरित्र का समवेत प्रकटीकरण करने का यह चुनौतीपूर्ण अवसर है। ऐसे में संकीर्णताओं से परे हटकर सरकार के कड़े व अच्छे निर्णयों का समर्थन शासन तंत्र को मजबूती प्रदान करेगा।

यदि विचार करें तो लगता है कि जहाँ विकसित देशों में कोविड-19 से निपटने की रणनीतियां कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं वहीं भारत  सभी संभव प्रयासों से इस महामारी को मात देकर दुनिया का नेतृत्व करने की दिशा में चल पड़ा है।अपनी सभी अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने रद्द करने व ऐतिहासिक यात्री रेलगाड़ियों की पूर्ण पाबंदी जैसे कठोर उपायों से इस रोग के प्रसार में राहत मिलने की पूर्ण उम्मीद की जा रही है।आर्थिक हितों पर मानवीय हितों को पुनः प्राथमिकता देते हुए संपूर्ण लाॅकडाउन की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के मद्देनजर छत्तीस घंटे के अंदर भारत सरकार ने 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज' के तहत एक लाख सत्तर हजार करोड़ के राहत पैकेज ने 'कोरोना' से लड़ने के भारतीय संकल्प को व्यक्त किया है। लाॅकडाउन से उत्पन्न आर्थिक नाकेबंदी व रोजमर्रा की जिंदगी पर पलने वाले गरीबों के समक्ष खड़े हुए खाद्यान्न संकट को इस पैकेज से फौरी राहत मिलने की  उम्मीद है।अंतराष्ट्रीय मोर्चे पर भी 'कोविड-19' से बचाव के मानवीय पक्ष को G-20 के वर्चुअल शिखर सम्मेलन में प्राथमिकता दी गयी है।महामारी के शिकार लोगों के बचाव के वैश्विक प्रयासों के भारतीय आह्वान के बाद पांच ट्रिलियन डालर के राहत पैकेज की घोषणा भारत के कूटनीतिक नेतृत्व की कुशलता को ही पुष्ट करता है।


 इस बीच कुछ मीडिया रिपोर्टों में कोरोना महामारी के वैश्विक प्रसार में चीन की जानबूझकर की गई चालबाजी व खुद के महाशक्ति बनने की आकांक्षा जैसी बातें की जा रही है। इनमें वुहान के अलावा बीजिंग व संघाई जैसे चीन के राजनीतिक व आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगरों का इस महामारी का कोई खास असर न होना भी चीन को कटघरे में खड़ा कर रहा है। किन्तु इस षडयंत्रकारी चीनी अवधारणा की तह में जरुरी अंतर्राष्ट्रीय सबूतों व तथ्यों पर आधारित नतीजों का अभी इंतजार करना होगा।नतीजा चाहे जो हो किन्तु जाने अनजाने विश्व भर में फैली इस विषाणु जनित महामारी ने दुनिया के समक्ष वैश्वीकरण के स्याह पक्षों से उपजी विद्रूपताओं के फलस्वरूप विश्व शक्तियों में मची आर्थिक होड़ को और बारीकी से समझने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में प्रसिद्ध जर्मन सामाजिक विचारक अर्नेस्ट फ्रेडरिक शूमेकर(1911-1977) की चर्चित कृति 'स्माॅल इज ब्यूटीफुल' व महात्मा गांधी(1869-1948) की 'हिन्द स्वराज' की प्रासंगिकता बहुत बढ जाती है। इन दोनों कृतियों में मानव समाज को स्थानीय व छोटे समुदायों में संगठित कर विकास के भीमकाय पश्चिमी प्रतिमानों से बचने की सलाह दी गयी है। महामारी से निपटने के लिए विश्व समुदाय को जोड़ने के दो बड़े परिवहन तंत्रों के ठहराव ने हिन्द स्वराज में की गयी रेलवे तंत्र की आलोचना आज सोचने पर मजबूर कर करती है। आशा है कि भारत सनातन संस्कृति के जीवन मूल्यों की दीपशिखा लेकर इस महामारी पर संयम,धैर्य,जागरुकता व संभावित उपचार जैसे चतुर्दिक प्रयासों से विजय प्राप्त कर दुनिया का मार्गदर्शन करेगा। विश्व गुरु के राष्ट्र गौरव की पुनर्स्थापना में 'शक्ति उपासना' के चल रहे महापर्व से उत्पन्न दैवीय ऊर्जा भी सहायक सिद्ध हो माँ भगवती से यही कामना है।


(लेखक ने लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी की है और वर्तमान में स्वतंत्र शोधकर्ता हैं )

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