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भारतीय पत्रकार दानिश की तालिबान द्वारा हत्या पर सेक्यूलर-लिबरल पत्रकारों की चुप्पी क्यों?

इस देश में पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी को अफगानिस्तान पर तालिबान ने हत्या कर दी लेकिन देश के कथित सेक्यूलर-लिबरल-वामपंथी पत्रकार तालिबान का नाम लेने कतरा रहे हैं।



डॉ अरुण कुमार

16 जुलाई 2021 को अफगानिस्तान में भारत के फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की तालिबान के आतंकियों ने हत्या कर दी। पुलित्जर पुरस्कार विजेता दानिश सिद्दीकी अंतर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर के लिए काम कर रहे थे और अफगानिस्तान में कुछ दिनों से रह रहे थे। तालिबान द्वारा दानिश सिद्दीकी की हत्या के बाद जो प्रतिक्रियाएं आईं और मीडिया ने जो खबरें बनाईं उनमें दानिश सिद्दीकी के लिए संवेदना तो है लेकिन उनकी हत्या के लिए जिम्मेदार आतंकवादी संगठन 'तालिबान' के खिलाफ गुस्सा नहीं दिखाई दे रहा है। बहुत से पत्रकार तो तालिबान का नाम लेने से भी कतरा रहे हैं।

आमतौर पर किसी की हत्या के बाद हत्यारों के खिलाफ जो गुस्सा देखने को मिलता है वह गुस्सा मीडिया और सोशल मीडिया में नहीं दिख रहा है। खुद को सेक्यूलर होने का दावा करने वाले लोगों ने तो तालिबान का जिक्र करना भी उचित नहीं समझा है। इन लोगों के मन में दानिश की हत्या को लेकर तालिबान के प्रति गुस्से का भाव नहीं है। भारत की कथित सेक्यूलर बिरादरी दानिश को श्रंद्धाजलि देते समय उनके द्वारा खींची गई उन तस्वीरों को अपलोड कर रहे हैं जो नरेन्द्र मोदी सरकार या भारत की गलत छवि प्रस्तुत करते हैं। दानिश को श्रद्धांजलि देते समय ये लोग तालिबान की धार्मिक कट्टरता, उसकी बर्बरता, उसकी अमानवीयता को एक तरह से बरी कर दे रहे हैं।

स्टेन स्वामी की मौत पर जो गुस्सा तथाकथित सेक्यूलर लोगों ने दिखाया और उसे हत्या साबित करने के लिए तमाम तर्क गढ़े, वह गुस्सा दानिश की तालिबान द्वारा हत्या पर क्यों नहीं दिख रही है? स्टेन स्वामी के विपरीत दानिश की हत्या को स्वाभाविक मौत की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। आखिर भारत के तथाकथित सेक्यूलर बुद्धिजीवी, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और एनजीओ बिरादरी के लोग तालिबान के प्रति अपने गुस्से का इजहार क्यों नहीं कर पा रहे हैं ? आखिर क्यों तालिबान की हिंसा और धार्मिक कट्टरता को छिपाया जा रहा है?


आइए, पहले मीडिया में आई खबरों को देखते हैं-


दानिश के पिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफेसर अख़्तर सिद्दिकी का बयान कई अखबारों ने छापा है। किसी भी अखबार ने उनके पिता के मुख से यह कहते हुए नहीं लिखा है कि उनके बेटे की हत्या तालिबान ने की है। सभी अखबारों ने यही लिखा है कि उनके पिता कह रहे हैं दानिश से दो दिन पहले बात हुई थी। वह खुश थे और अपने असाइनमेंट के बारे में बता रहे थे। परिवार दानिश के शव के इन्तज़ार में है। एक पिता के होनहार युवा पुत्र की हत्या हुई है और उनके मन में हत्यारों के खिलाफ कोई गुस्सा नहीं है, ऐसा कैसे हो सकता है? दरअसल, मीडिया द्वारा दानिश के पिता के बयान से तालिबान के प्रति गुस्से वाले अंश को हटा दिया गया होगा।


देश के प्रमुख अखबारों ने यह हेडलाइन बनाया है-


नवभारत टाइम्स - पुलित्जर पुरस्कार विजेता भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी अफगानिस्तान में भीषण लड़ाई में मारे गए


हिंदुस्तान - नहीं रहा तस्वीरों से सच दिखाने वाला पत्रकार


आजतक - अफगानिस्तान में कवरेज के दौरान भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की हत्या


जनसत्ता - दानिश सिद्दीकी के कैमरे का कमाल, कोरोना का असली रूप दिखा गया पत्रकार


अमर उजाला - अफगानिस्तान: भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की हत्या, हिंसाग्रस्त कंधार में कवरेज के दौरान गई जान


दैनिक भास्कर - अफगानिस्तान में मारे गए दानिश की 15 बेस्ट फोटोज: रोहिंग्या और कोरोना की दूसरी लहर के दौरान फोटो जर्नलिस्ट दानिश की तस्वीरों से दुनिया ने सच्चाई देखी


एनडीटीवी - कंधार में रिपोर्टिंग करते हुए फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी की मौत


The Hindu - Indian photojournalist Danish Siddiqui killed in Afghanistan's Kandhar Province


Indian Express - Photojournalist Danish Siddiqui, whose images riveted the world, killed on assignment in Afghanistan


द क्विंट- दानिश सिद्दीकी: चला गया वो पत्रकार जिसकी तस्वीरों में सच चीखता नजर आता था



फेसबुक और ट्वीटर पर कमेंट


एनडीटीवी के नामचीन पत्रकार रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पर लिखा है- भारतीय पत्रकारिता को एक साहसिक मुक़ाम पर ले जाने वाले दानिश सिद्दीक़ी आपको सलाम। अलविदा। आपने हमेशा मुश्किल मोर्चा चुना। मोर्चे पर आप शहीद हुए हैं। पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त करने के बाद भी आपने मोर्चों का चुनाव नहीं छोड़ा। बंदूक़ से निकली उस गोली को हज़ार लानतें भेज रहा हूँ जिसने एक बहादुर की ज़िंदगी ले ली।


रवीश कुमार ने तालिबान का नाम भी नहीं लिया है। उन्होंने उन 'गोलियों' को लानत भेजी है जो आकर दानिश के शरीर में घुस गईं और इस कारण दानिश की मौत हो गई। निर्भीक और अबिकाऊ पत्रकारिता का दम्भ भरने वाले रवीश कुमार को ऐसी कौन सी ताकत है जो तालिबान का नाम तक लेने से रोक रही है?


कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो दानिश सिद्दीकी को श्रद्धांजलि देने के लिए बहुत शब्द कम खर्च किए हैं। उन्होंने लिखा है- दानिश सिद्दीकी के परिवार और दोस्तों को मेरी संवेदना। मैं GOI से अपील करता हूँ कि वह उनकी डेड बॉडी को जल्द से जल्द घर लाने में मदद करें।


बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया है- The demise of Danish Siddiqui is a tragic loss. He was a Pulitzer Prize-winning photojournalist whose photographs were emblematic of the upheavals that our country witnessed in the past few years. My thoughts & prayers are with his family, loved ones and colleagues.


सत्य हिन्दी के संपादक और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता आशुतोष ने ट्वीट किया है- भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी अफ़ग़ानिस्तान संघर्ष में मारे गए। वह अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी रायटर्स के लिए अफ़ग़ानिस्तान में रिपोर्टिंग कर रहे थे।


अजीत अंजुम ने भी तालिबान या दानिश की हत्या के लिए दोषी संगठन का नाम नहीं लिया है- शुक्रिया नवभारत टाइम्स

एक जाँबाज़ फ़ोटोग्राफ़र को इतना सम्मान देने के लिए ..यही वो डिजर्व करते थे ..उन ज़हरीले पुतलों का क्या , जो उनकी हत्या पर जश्न मना रहे हैं ...

अजीत अंजुम ने तो उन गोलियों को भी लानत नहीं भेजा है। उन्होंने तो भारत के लोगों की ही आलोचना की है। वे एक तरह से दानिश की हत्या के लिए भारत को ही दोषी ठहरा रहे हैं।


पत्रकार राना अयूब ने भी अपने ट्वीट में तालिबान का नाम नहीं लिया है- Danish lost his life doing what he did best. Capturing the unpopular truth at great personal risk to his life. Here are some of the iconic images he shot that shall remain a part of history. Innalillahi wa inni alayhi rajeoon. Strength to his wife, his family and friends.


एक ट्वीट में तो राना अयूब ने उन भारतीयों को Bloody Sick कहा है जो दानिश के हत्यारे तालिबान का नाम ले रहे हैं।


भारत के तथाकथित सेक्यूलर बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की यह बहुत बड़ी समस्या है। वे खुद को सेक्यूलर साबित करने के लिए तमाम तरह के कुतर्क गढ़ते हैं लेकिन एक बात का पूरा ख्याल रखते हैं कि दुनिया भर के मुसलमानों के खिलाफ कुछ नहीं बोलना है चाहे वे आतंकवादी ही क्यों ना हों। ऐसा करने के लिए वे आतंकवादियों तक को या तो मसीहा साबित कर देते हैं या चुप्पी लगा जाते हैं। ये वही लोग हैं जो भारत पर हुए आतंकी हमले के लिए भी भारतीयों को ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं। जब भी कोई घटना घटती है और उसमें यदि अपराधी मुसलमान हो तो ये लोग आश्चर्यजनक ढंग की चुप्पी साध लेते हैं। जब पीड़ित मुसलमान हो तो तो सौगुना ताकत से चिल्लाते हैं। अखबारों के सैकड़ों पृष्ठ भर देते हैं। सोशल मीडिया पर कोहराम मचा देते हैं। यदि अपराधी और पीड़ित दोनों मुसलमान हों जैसाकि दानिश की हत्या के मामले में है तो तीसरे को अपराधी बनाते हैं। दानिश सिद्दीकी की हत्या पर तालिबान को बाईज्जत बरी करने वाली इस तरह की घृणित राजनीति को हमें समझना पड़ेगा।


इस देश में सेकुलरिज्म के नाम कब चुप्पी साधनी है औऱ कब चिल्लाना है इसका एकाधिकार देश के कथित सेकुलर-लिबरल-वामपंथी चिंतकों-विचारकों ने अपने हाथ में ले रखा है। उन्होंने अपने आपको सेकुलरिज्म के दायरे में इस तरह जकड़ लिया है कि अपने देश के एक बेहतरीन पत्रकार की बेरहम मौत का मातम मनाने और हत्यारों को लानत भेजने में भी उन्हें शर्म आ रही है।


(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

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