top of page

अफगानिस्तान में महिलाओं ने पढ़ने के लिए उठाए हथियार


Women holding guns in Jawzjan province in northern Afghanistan.(Twitter/ Sultan Faizy)



अरुण कुमार


अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना ने वापस जाना शुरू कर दिया है। नब्बे प्रतिशत से अधिक अमेरिकी सैनिक अपने देश वापस भी लौट चुके हैं। अमेरिका सेना अफगानिस्तान से वापस लौट रही है और सैन्य ठिकानों को अफगान सैनिकों को सौंपती जा रही है। वह अब तक सात सैन्य ठिकाने अफगान सैनिकों को या कहें अफगानिस्तान रक्षा मंत्रालय को सौंप भी चुकी है। अमेरिकी सेना का अफगानिस्तान छोड़ने का प्रभाव भी तेजी से दिखाई देने लगा है। कई विशेषज्ञों को इसका अंदेशा था कि अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद वहां तालिबान कब्जा कर लेगा। यह अंदेशा भी सही साबित होता हुआ दिखाई देने लगा है।

अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान के 9 जिलों पर तालिबान ने कब्जा जमा लिया है और उसने अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर भी अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है। तालिबान और अफगानी सैनिकों के बीच लगातार युद्ध हो रहे हैं। इस युद्ध में कहीं अफगान सैनिक तो कहीं तालिबान के आतंकी मजबूत दिखाई दे रहे हैं। कई मोर्चों पर तो अफगान सैनिकों ने आत्मसमर्पण भी कर दिया है।


अफगानिस्तान में तालिबान हमेशा से यह घोषणा करता रहा है कि जब वह देश को अपने नियंत्रण में ले लेगा तो इस्लामी कानून लागू करेगा। फिलहाल, उसने जिन 9 जिलों पर अपना कब्ज़ा जमाया है वहां उसने इस्लामी कानून यानी 'शरिया' लागू भी कर दिया है। इन इलाकों में महिलाओं को शिक्षा और घर से बाहर निकलकर घूमने-फिरने की पाबंदी लगा दी है। अमेरिकी सेनाओं की उपस्थिति के कारण अफगानी महिलाओं को शिक्षा और घूमने-फिरने की सीमित मात्रा में आज़ादी थी। वहां कुछ स्कूलों में महिलाओं को शिक्षित करने के उद्देश्य से व्यवस्था की गई थी। तालिबान द्वारा उन स्कूलों को विस्फोटकों से बर्बाद कर दिया गया है।

इस घटना की प्रतिक्रिया में कुछ महिलाओं ने हथियार उठा लिया है। अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में महिलाएं हाथों में रॉकेट लॉन्चर, असॉल्ट राइफल लिए दिखीं हैं। वे महिलाएं नारा लगा रही थीं कि उन्होंने देश और अपना भविष्य बचाने के लिए हथियार उठा लिए हैं। वे यह भी कह रही हैं कि उन्हें तालिबानियों से किसी भी अच्छाई की उम्मीद नहीं है। वे पढ़ना चाहती हैं ताकि देश व अपने परिवार का भविष्य गढ़ सकें। यही कारण है कि वे अफगान सैनिकों के साथ और तालिबान आतंकवादियों के विरोध में खड़ी हो गई हैं। इन महिलाओं में कुछ अफगानी पत्रकार भी हैं।


अमेरिकी सेना की अफगान से वापसी के बाद यहां के नागरिक डर के माहौल में जी रहे हैं। इसका सबसे बुरा प्रभाव अफगानी महिलाओं पर पड़ा है इसलिए उन्होंने फैसला किया है कि वे अपनी जान देकर भी महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करेंगे। उनका कहना है कि 30 साल पहले देश पर जो अंधेरा छाया था, उसे फिर से आने नहीं देंगे। हम अपनी शिक्षा पूरी करना चाहते हैं और अफगानिस्तान को हिंसामुक्त समाज बनाना चाहते हैं। इन महिलाओं ने राजधानी काबुल सहित जोजजान, गौर और कई इलाकों में प्रदर्शन किए।


(डॉ अरुण कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर, लक्ष्मीबाई महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय)

157 views
bottom of page