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शिक्षा-व्यवस्था का आधार हैं योग्य शिक्षक और मौलिक शोध

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 राष्ट्रीय विकास में सुयोग्य, समर्पित और सक्षम शिक्षकों और गुणवत्तापूर्ण अनुसन्धान की अनिवार्य और आधारभूत भूमिका को पहचानती हैI



प्रोफ़ेसर रसाल सिंह


भारत देश को अंतरराष्ट्रीय ज्ञान महाशक्ति बनाकर ही उसकी दिन-रोज बढ़ रही 135 करोड़ जनसंख्या को रोटी,कपड़ा,मकान,शिक्षा स्वास्थ्य जैसी आधारभूत सुविधाएँ, दुर्घटना या वृद्धावस्था आदि के समय काम आने वाली सामाजिक सुरक्षा और गरिमापूर्ण जीवन मुहैय्या कराया जा सकता हैI प्रतिभाशाली,प्रेरित और परिश्रमी विद्यार्थियों को शिक्षण व्यवसाय और अनुसन्धान कार्य की ओर आकर्षित करके ही भारत को ज्ञान महाशक्ति बनाया जा सकता हैI यह सब सुनिश्चित करने के लिए भारत को अपने शिक्षकों को सुविधापूर्ण और सम्मान देना सीखना होगाI इसके साथ ही, अध्यापन को अपनी आजीविका के रूप में चुनने वाले इन प्रतिभाशाली लोगों के समुचित प्रशिक्षण की व्यवस्था भी करनी होगीI इसके लिए वर्तमान शिक्षण प्रशिक्षण संस्थानों, शोध-संस्थानों, उनके पाठ्यक्रमों और पद्धतियों और दृष्टिकोण में आमूलचूल परिवर्तन करना होगाI राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 राष्ट्रीय विकास में सुयोग्य, समर्पित और सक्षम शिक्षकों और गुणवत्तापूर्ण अनुसन्धान की अनिवार्य और आधारभूत भूमिका को पहचानती हैI साथ ही, यह शिक्षा नीति शिक्षक व्यवसाय की वास्तविकता, शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थानों के व्यवसायीकरण और अनुसन्धान में नवीनता,मौलिकता और उत्कृष्टता के अभाव के प्रति सचेत हैI बीमारी की सही समझ और उसके कारणों की पहचान से ही उपचार और निदान संभव हैI राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 बीमारी की नब्ज पकड़कर उसका उपचार सुझाने वाला दृष्टि-पत्र दिखाई पड़ती हैI हालाँकि, इस दृष्टि-पत्र का कार्यान्वयन ही सर्वाधिक मूल्यवान,निर्णायक और चुनौतीपूर्ण होगाI


वैदिक काल से आजतक भारत में अध्ययन-अध्यापन की अत्यंत उन्नत और उत्कृष्ट परम्परा रही हैI महर्षि वेदव्यास, महर्षि परशुराम, महर्षि विश्वामित्र, आदिगुरू शंकराचार्य, गुरू द्रोणाचार्य, आचार्य चाणक्य, आकाशधर्मा गुरू रामानंद, समर्थ गुरू रामदास, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. ए. पी. जे. अबुल कलाम जैसे गुरुओं की गौरवपूर्ण, स्पृहणीय और अनुकरणीय परंपरा रही हैI इन और इनके जैसे अनेक अन्य गुरुओं के कारण ही भारत की ज्ञान-परंपरा अत्यंत उन्नत और विकसित रही हैI इन गुरुओं, इनके गुरुकुलों और इनके समर्पित और जिज्ञासु शिष्यों ने ही भारत को विश्वगुरू का गौरव प्रदान कियाI ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि गुरू और शिष्य का सम्बन्ध विक्रेता और क्रेता का नहीं थाI शिक्षा का व्यवसायीकरण और व्यापारीकरण नहीं हुआ थाI


शिक्षा का उद्देश्य संस्कार और रोजगार अर्जित करना हैI मूल्यपरक और कौशल आधारित शिक्षा ही इस उद्देश्य को सम्भव कर सकती हैI शिक्षा के इन लक्ष्यों की प्राप्ति में शिक्षक की अपरिहार्य भूमिका होती हैI गौरतलब है कि शिक्षण सूचना-प्रवाह या सूचना-संग्रह मात्र नहीं हैI यह एक पारस्परिक अंतःक्रिया हैI यह पारस्परिक अंतःक्रिया अपने पूर्ण फलागम के साथ कक्षा में प्रत्यक्ष परिघटित होती हैI शिक्षक इस अभिक्रिया का ‘केटालिस्ट’ होता हैI शिक्षण जड़ प्रक्रिया न होकर दैनंदिन गतिशील क्रिया हैI जॉन डेवी ने शिक्षा में नवोन्मेष और नवाचार की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए लिखा है-“ यदि हम विद्यार्थियों को जो कल पढ़ाया था, वही आज भी पढ़ा रहे हैं तो हम उन्हें उनके कल(भविष्य) से वंचित कर रहे हैंI” नवोन्मेष और नवाचार की धुरी उत्प्रेरित, उत्साही और ऊर्जावान शिक्षक होता हैI शिक्षक रोल मॉडल भी होता हैI प्रत्येक विद्यार्थी अपनी अध्ययन-अवधि में किसी-न-किसी अध्यापक से प्रभावित और प्रेरित होता है और वही उसका रोल मॉडल बन जाता हैI छात्र-जीवन में ऐसे अभिप्रेरक रोल मॉडल का अकल्पनीय महत्व और योगदान होता हैI प्रेरणा-विहीन जीवन ठहराव और दिशा-भ्रम का शिकार होता हैI शिक्षक की उपस्थिति में कक्षा की क्रियाओं में प्रत्यक्ष भागीदारी, इंटरैक्टिव वातावरण, सहपाठियों के साथ पठन-पाठन के दौरान वार्तालाप और व्यवहार, अन्य पाठ्येतर गतिविधियों यथा- संगीत,नृत्य,कविता,नाटक, खेलकूद, वाद-विवाद, भाषण, टूर–पिकनिक आदि का भी अपना ‘पाठ’ होता हैI इस पाठ का ‘लर्निंग आउटकम’ भविष्य-निर्धारण और जीवन-निर्माण में सर्वाधिक काम का होता हैI


शिक्षा में शिक्षक की केन्द्रीय भूमिका होती हैI समाज में शिक्षक का सम्मान बहाल करके, उसे अनुकूल, प्रेरक और स्वतंत्र वातावरण प्रदान करके और उसकी सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त वेतन देकर ही सर्वोत्कृष्ट युवाओं को शिक्षा क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए आकर्षित और प्रेरित किया जा सकता हैI आज शिक्षक का बहुत सारा समय मिड डे मील बंटबाने में, जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने, मतदाता पहचान-पत्र बनबाने आदि सरकारी कामों में जाया होता हैI जबकि उसे पठन-पाठन में अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए नया ज्ञान, कौशल और तकनीक सीखते रहना चाहिएI राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस वास्तविकता को न सिर्फ स्वीकारती है , बल्कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के प्रभावी उपाय भी सुझाती है I राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्पष्ट तौर से कहा गया है कि सर्वोत्कृष्ट प्रतिभाओं को आकर्षित करके और उनको उपयुक्त प्रशिक्षण देकर ही भारत को एक ज्ञान समाज बनाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता हैI अभी शिक्षण प्रशिक्षण के अधिकांश संस्थान और पाठ्यक्रम इस कसौटी पर खरे नहीं उतरतेI आज देश में लगभग 10 हजार शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान हैं I परन्तु दुखद सत्य यह है कि इनमें से अधिकांश की साख डिग्री बेचने वाले सस्थानों की ही हैI इन संस्थानों में उत्कृष्टता और नवाचार के प्रोत्साहन और प्रतिभाओं के आकर्षण और विकास के लिए कोई जगह या वातावरण नहीं हैI इन संस्थानों और इनसे प्रशिक्षित शिक्षकों की कोई विश्वसनीयता समाज में नहीं है I बुनियादी मानकों को पूरा न करने वाले ये अधिकांश संस्थान डिग्री बेचने की दुकानें मात्र हैंI इनकी नियामक संस्थाओं में भी भारी भ्रष्टाचार और अनियमितता हैI राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस चिंताजनक पहलू के प्रति सचेत हैI

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यालयी शिक्षक-प्रशिक्षण को चार वर्षीय किया गया है I सन 2030 तक सभी एकल शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को बहु-विषयक संस्थानों में बदला जायेगा ताकि मनोविज्ञान, दर्शन-शास्त्र, इतिहास, गणित, भौतिक विज्ञानं, भारतीय भाषाओं आदि विषयों के साथ-साथ कला,संगीत, खेलकूद आदि की भी समग्र और एकीकृत शिक्षा प्रदान करके योग्य शिक्षक तैयार किये जा सकें I सन 2030 तक 4 वर्षीय एकीकृत बी एड कार्यक्रम स्कूली शिक्षकों के लिए न्यूनतम अर्हता बन जायेगा I एकीकृत बी एड में शिक्षण के साथ-साथ एक और विषय में ड्यूअल मेजर स्नातक डिग्री होगीI शिक्षण में रुचि रखने वाले पहले से स्नातक किये हुए विद्यार्थी ऐसे बहु-विषयक शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों से दो वर्षीय बी एड डिग्री करके अध्यापन में जा सकेंगे I साथ ही चार वर्षीय ( नयी शिक्षा नीति में प्रस्तावित ) स्नातक डिग्री किये हुए अभ्यर्थी एक वर्षीय बी एड डिग्री लेकर अध्यापन कर सकेंगे I वास्तव में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में न सिर्फ शिक्षक प्रशिक्षण की अवधि को बढ़ाने का प्रस्ताव है, बल्कि कागजी कॉलेजों को वास्तविक शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान बनाने पर भी विशेष बल है I इस नीति में मल्टी-डिसिप्लिनैरिटी संस्थानों में शिक्षक के सर्वांगीण और प्रशिक्षण पर बलाघात हैI समग्र, सर्वांगीण और एकीकृत प्रशिक्षण ही भविष्य में बेहतरीन शिक्षक तैयार कर सकेगाI नियुक्ति के बाद भी व्यावसायिक विकास की आवश्यकता रहती हैI इसके मद्देनज़र प्रत्येक शिक्षक द्वारा निरन्तर व्यावसायिक विकास (सी पी डी) में वर्ष में 50 घंटे लगाने का प्रस्ताव हैI योग्य, प्रेरित, सक्षम और सक्रिय शिक्षक में सतत सीखने का भाव होना अति आवश्यक है I इस भाव से न सिर्फ वह स्वयं लाभान्वित होता है, बल्कि उसके विद्यार्थी और समाज भी लाभान्वित होते हैंI


इन सब प्रस्तावों की सफलता उपलब्ध कराये जाने वाले संसाधनों और वातावरण पर निर्भर करती हैI सतत समग्र मूल्यांकन (सी सी ई) एक अत्यंत सुचिंतित मूल्यांकन-प्रक्रिया थी किन्तु साधनों और समय के अभाव में वह अपेक्षित परिणाम नहीं दे सकीI अब इसकी जगह केंद्र सरकार ने सन 2021 में अंतरराष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम (पी आई एस ए) लागू करने का दूरगामी निर्णय लिया है I यह मूल्यांकन कार्यक्रम तोता-रटंत की जगह अर्जित ज्ञान के अनुप्रयोग का परीक्षण पर बल देता हैI हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली छात्र के मस्तिष्क को सूचना-संग्रहालय बनाने पर जोर देती हैI जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों द्वारा अर्जित ज्ञान और कौशल की प्रायोगिकता और प्रयोजनीयता को सर्वाधिक महत्व दिया गया हैI इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तदनुरूप शिक्षकों का प्रशिक्षण सबसे पहला कार्य हैI


उच्च शिक्षण संस्थान भी योग्य और उत्साही शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैंI इस शिक्षा नीति में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए योग्यतम शिक्षकों की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया हैI बेहतरीन प्रतिभाओं को इस व्यवसाय की ओर आकर्षित करने, भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और वस्तुपरक बनाने के साथ-साथ शिक्षकों को प्रशिक्षित करने पर भी विशेष जोर हैI शिक्षकों की वर्तमान नियुक्ति-प्रक्रिया में पारदर्शिता और प्रमाणिकता का पूर्ण-अभाव हैI नियुक्ति में प्रतिभा और पेशेवर क्षमताओं के बरक्स ‘नेटवर्किंग’ और ‘सेटिंग-प्लॉटिंग’ का महत्व हैI नियुक्ति-प्रक्रिया भाई-भतीजावाद, जीजा-सालीवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद और चेलावाद की चपेट में हैI वर्तमान नियुक्ति-प्रक्रिया उच्च-शिक्षा से प्रतिभा-पलायन का सबसे बड़ा कारण है I इसे तत्काल दुरुस्त करने की आवश्यकता है I हालाँकि, वर्तमान नियुक्ति-प्रक्रिया में अतिव्याप्त भ्रष्टाचार की जानकारी और जागरूकता के बावजूद राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसके उन्मूलन का कोई विश्वसनीय और आश्वस्तकारी ‘रोडमैप’ दिखाई नहीं पड़ता हैI यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति की एक बहुत बड़ी सीमा हैI


कॉलेज और विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों के लिए अभी जो ओरिएंटेशन और रिफ्रेशर कोर्स संचालित किये जा रहे हैं; वे अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पूर्ण असफल हुए हैंI वे कागजी खानापूरी से अधिक कुछ नहीं हैंI ये पाठ्यक्रम शिक्षक को नया सीखने या रिफ्रेश होने के लिए नहीं प्रमोशन की अर्हता को पूरा करने की विवशता में करते हैंI इन कार्यक्रमों की पूरी संरचना और पाठ्यचर्या नीरस, उबाऊ और जड़ हैI राष्ट्रीय शिक्षा नीति इन कार्यक्रमों को भी रोचक, ज्ञानवर्धक, पेशावर बनाने की बात करती हैI ताकि शिक्षकों को वास्तव में नयी शिक्षण प्रविधियों, नयी शैक्षणिक तकनीकों, शिक्षण-अधिगम प्रक्रियाओं, नए शोध और नए कौशल से परिचित करते हुए उन्मुख किया जा सके I दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये उन्मुखीकरण कार्यक्रम विमुखीकरण कार्यक्रम साबित हो रहे हैं और इन कार्यक्रमों को कराने के लिए जिम्मेदार संस्थान सफ़ेद हाथी बनते जा रहे हैं I पेशागत/व्यावसायिक सहायता के लिए विषय विशेष के ख्यातिलब्ध विद्वानों को मेंटर बनाने का भी प्रस्ताव हैI


शिक्षक राष्ट्र के भविष्य निर्माता होते हैंI वे राष्ट्र की नींव तैयार करते हैंI इसीप्रकार अनुसन्धान राष्ट्रीय ज्ञान-सम्पदा का नवनीत होता हैI इस नवनीत का आस्वाद राष्ट्रीय जीवन को विकास और सशक्तिकरण करता हैI इसलिए नीति-निर्माण में इन दोनों ही विषयों की उपेक्षा नहीं की जा सकती हैI इस नीति में पी एच डी शोधार्थियों के लिए शोध के साथ-साथ शिक्षण को भी अनिवार्य किया गया हैI यह स्वागत-योग्य पहल है क्योंकि शोध और शिक्षण अन्यान्योश्रित हैं और परस्पर समृद्ध करते हैंI पी एच डी के दौरान शोधार्थियों को शैक्षणिक प्रक्रियाओं, पाठ्यक्रम–निर्माण, मूल्यांकन-प्रणाली और सूचना-तकनीक आदि का प्रत्यक्ष अनुभव और प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव हैI उन्हें शिक्षण-सहायक के रूप में न्यूनतम निर्धारित घंटों के लिए कक्षा-शिक्षण का अवसर भी दिया जायेगा I उल्लेखनीय है कि पी एच डी करने वाले अधिकांश शोधार्थी या तो कॉलेजों /विश्वविद्यालयों में शिक्षण करते हैं या फिर आगे पूर्णकालिक शोध करते हैं I दोनों ही स्थितियों में यह निर्णय दूरगामी और सकारात्मक परिणाम देने वाला साबित होगा क्योंकि यह न सिर्फ शोधार्थी को शिक्षण के लिए तैयार करेगा बल्कि उसके शोध-कार्य पर फीडबैक भी मिलता रहेगा और उसके शोध-परिणामों का लाभ छात्र-छात्राओं और समाज को भी मिलता रहेगा I


यह अत्यंत दुःख का विषय है कि हमारे देश में जितनी दयनीय स्थिति शिक्षण-प्रशिक्षण की है; ठीक उतनी ही दुर्दशा शोध की भी हैI राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शोध के गिरते स्तर पर भी चिंता व्यक्त की गयी हैI हमारे देश में हो रहे शोध में गुणवत्ता और मौलिकता का सर्वथा अभाव हैI अधिकांश विषयों में पुराने कामों को ही कॉपी-पेस्ट करके शोध-ग्रंथों और और शोध-रिपोर्टों के रूप में पेश किया जाता हैI जबकि इक्कीसवीं सदी में ज्ञान-सृजन और अनुसन्धान की निर्णायक भूमिका होने वाली हैI अमेरिका, इजरायल, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों ने इसी के बलबूते अपनी अर्थव्यवस्थाओं को गुणात्मक विस्तार दिया है I भारत शोध के क्षेत्र में आगे बढ़कर ही इन विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ खड़ा हो सकता है I 135 करोड़ लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने और उन्हें गरिमापूर्ण जीवन देने के लिए शोध में नवाचार, मौलिकता, और गुणवत्ता आवश्यक है I देश में शोध और अनुसन्धान की संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता हैI


हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति खोजी-वृत्ति और जिज्ञासु-प्रवृत्ति को विकसित नहीं करती बल्कि रेडीमेड और रटंत विद्या को प्रोत्साहन देती हैI इसे बदलने की जरूरत हैI मौलिक चिंतन और लीक से हटकर सोचने की प्रवृत्ति अनुसन्धान की आधारभूमि हैI कार्य-कारण श्रृंखला की खोज से ही ज्ञान-सृजन और अनुसन्धान संभव है I वर्तमान व्यवस्था में उसकी सीमित गुंजाइश हैI बहु-विषयक अनुसन्धान को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है I साथ ही, अनुसन्धान को सीधे-सीधे समाज और उद्योगों से जोड़ने की भी आवश्यकता हैI इससे अनुसन्धान, समाज और उद्योग तीनों लाभान्वित होंगेI गुणवत्तापूर्ण अनुसन्धान के लिए संसाधनों की विशेष आवश्यकता होती है I लालफीताशाही को समाप्त करके पर्याप्त और अबाध संसाधन उपलब्ध कराने के लिए एक राष्ट्रीय अनुसन्धान फाउंडेशन(एन आर एफ) की स्थापना का प्रस्ताव हैI यह फाउंडेशन राष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण अनुसन्धान को विकसित और उत्प्रेरित करेगाI यह अनुसन्धान की नयी फंडिंग एजेंसी होगीI पुरानी फंडिंग एजेंसी – डी एस टी, डी ए ई, डी बी टी, आई सी एम आर, आई सी एच आर, आई सी एस एस आर आदि यथावत शोध-निधि देती रहेंगीI हालाँकि, उनको और पेशेवर और कार्य-क्षम बनाया जायेगाI इस फाउंडेशन का सञ्चालन बेहतरीन शोधकर्ताओं और आविष्कर्ताओं के रोटेटिंग ‘बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स’ द्वारा किया जायेगाI इससे सरकारी हस्तक्षेप और नौकरशाही की दखलंदाजी की सम्भावना नहीं रहेगीI श्रेष्ठतम प्रतिभाओं को शोध की ओर आकर्षित करके, उनके लिए पर्याप्त निधि की निरंतर उपलब्धता और उत्प्रेरक और स्वतंत्र कार्य-वातावरण सुनिश्चित करने और प्रशासनिक शिकंजे और कागजी औपचारिकताओं को न्यूनतम करने से ‘शोध-परिणाम’ गुणवत्तापूर्ण, उत्कृष्ट और उपयोगी होगाI


शिक्षा बालक की मानवीय क्षमताओं के विकास का साधन हैI इससे एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करके राष्ट्र का सतत,संतुलित और समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सकता हैI सुशिक्षित व्यक्ति समाज और राष्ट्र की प्रगति का संवाहक होता है जबकि अशिक्षित या अर्ध-शिक्षित व्यक्ति राष्ट्रीय विकास में बाधक होता हैI अब समय आ गया है कि अब हमें इस सत्य को स्वीकार करके अपना नीति-निर्माण करना चाहिएI राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 इसी दिशा में उठाया गया एक सुचिंतित और सकारात्मक कदम हैI इस नीति का समयबद्ध कार्यान्वयन करके ही भारत को पुनः विश्वगुरू बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना को साकार किया जा सकता हैI कार्यान्वयन ही इस शिक्षा-नीति की सबसे बड़ी कसौटी होगी और वही इसकी ऐतिहासिक उपलब्धि भी होगीI


(अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय)

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