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नई शिक्षा नीति से बनेगा देश आत्म निर्भर


नई शिक्षा नीति, भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित होने के साथ-साथ, भारतीय परम्पराओं, भारतीय संस्कृति एवं भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन, पुनर्स्थापन एवं प्रसार पर जोर देती हैं, जिससे यह भारत को एक समर्थ, गौरवशाली, आत्मनिर्भर बनाने में निश्चय ही प्रमुख भूमिका निभाएगी



डॉ. शान्तेष कुमार सिंह & डॉ. नरेश कुमार वर्मा


स्कूल-कॉलेज की व्यवस्था में बड़े बदलाव के साथ 29 जुलाई 2020 को कैबिनेट बैठक में 34 साल बाद भारत की नई शिक्षा नीति को लागु करने का फैसला लिया गया जिसे पूर्व इसरो प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है।1986 में वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई थी साथ ही लम्बें सयम से भारतीय शिक्षा नीति में किसी भी प्रकार को कोई बड़ा परिवर्तन नहीं किया गया था जिसके कारण भारतीय शिक्षा प्रणाली जोकि किसी समय विश्व का मार्ग दर्शन किया करती थी आज विश्व के पटल पर पिछड़ी और दिशाहीन सिद्ध हो रही थी।


मोदी सरकार ने तय किया है कि अब सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का कुल 6 फीसदी शिक्षा पर खर्च होगा जो फिलहाल भारत की जीडीपी का 4.43% हिस्सा ही है।मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर अब शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है जोकि बड़ा और महत्वपूर्ण बदलाव है. इससे शिक्षा को अब ज्ञान अर्जन के सन्दर्भ में देखा जायेगा ना कि बाजार के सन्दर्भ में।


“विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया।

यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते!!”

को केंद्र में रख कर नई शिक्षा नीति 2020 बनाया गया है।जिसका मुख्य उदेश्य भाषा दक्षता, वैज्ञानिक स्वभाव, सौंन्दर्य बोध, नैतिक तर्क, डिजिटल साक्षरता, भारत बोध और चेतना का विकास करना है साथ ही राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा की रुपरेखा में सभी प्रमुख भारतीय भाषाओ को महत्व दिया जायेगा और पाठ्यक्रम को और अधिक गुणवत्तायुक्त, लचीला/एकीकृत और मूल्यांकन परक होगा।

नई शिक्षा नीति, भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित होने के साथ-साथ, भारतीय परम्पराओ, भारतीय संस्कृति एवं भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन, पुनर्स्थापन एवं प्रसार पर जोर देती हैं, जिससे यह भारत को एक समर्थ, गौरवशाली, आत्मनिर्भर बनाने में निश्चय ही प्रमुख भूमिका निभाएगी। इसके अंतर्गत सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति में परिवर्तन देखने को मिलेगा।प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक पूरी शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करने की बात कही है जो समयानुकूल और उचित निर्णय हैं। पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक की शिक्षा अब 5+3+3+4 पर आधारित होगी जो 3 से 18 वर्ष के बच्चो के लिए निर्धारित किया गया है। 2025 तक शिक्षा के सार्वभौमिकिकरण की बात की गई हैं। छात्रों पर किसी भी एक भाषा को थोपने के बजाय इसके अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में देने का प्रावधान किया गया हैं। साथ ही बहुभाषा का विकल्प भी बच्चो को प्रदान किया गया है जिससे उनका मानसिक विकास और अच्छे से हो सके।


यह भी उलेखनीय है कि स्नातक स्तर पर समग्र एवं बहुविषयक शिक्षा देना बहुत आवश्यक है ताकि विद्यार्थी का केवल मानसिक ही नहीं वरन शारीरिक, आत्मिक और नैतिक विकास भी हो सके।

शिक्षा नीति के अंतर्गत ४ वर्षीय शिक्षा प्रणाली अपनाने की बात कही गई हैं। जो कई निकास विकल्पों के साथ बच्चो को उपलब्ध रहेगा।जैसे आज की शैक्षणिक व्यवस्था में 4 साल इंजीनियरिंग पढ़ने के बाद या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद अगर कोई छात्र किसी कारण आगे नहीं पढ़ पाता है तो उसके पास किसी प्रकार को कोई विकल्प नहीं रहता है और उसको कोई डिग्री/ डिप्लोमा/ सर्टिफिकेट नहीं मिलती है जिससे उसका सम्पूर्ण परिश्रम बेकार चला जाता है. नई व्यवस्था के अंतर्गत अब ऐसी व्यवस्था की गई है की यदि कोई छात्र पढाई बीच में छोड़ता है तो उसे एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा, तीन या चार साल के बाद डिग्री मिल सकेगी. साथ ही 'बैंक ऑफ क्रेडिट' के तहत छात्र के प्रथम, द्वितीय वर्ष के क्रेडिट डिजीलॉकर के माध्यम से क्रेडिट रहेंगे। जिससे अगर छात्र को किसी कारणवश पढाई से विराम (ब्रेक) लेना हुआ और पुनः एक नियमित अवधि के अंतर्गत वह वापस आना चाहता है तो उसे प्रथम और द्वितीय वर्ष दुबारा करने की आवश्यकता नहीं होगी क्योकि क्रेडिट बैंक की व्यवस्था के तहत उसके क्रेडिट एकेडमिक क्रेडिट बैंक में मौजूद रहेंगे। ऐसे में छात्र उसका इस्तेमाल अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए कर सकता है. शिक्षा को अलग-अलग खंडों में बांट कर देखना उचित नहीं है।


वर्तमान व्यवस्था में उच्य शिक्षा नीति कला, विज्ञान, शैक्षणिक सहशैक्षणिक, अकादमिक और व्यवसायिक शिक्षा में बटी हूई है प्रसन्नता का विषय है कि नई शिक्षा नीति में कला, विज्ञान, शैक्षणिक सहशैक्षणिक, अकादमिक और व्यवसायिक शिक्षा के बीच विभेद समाप्त करने का प्रावधान किया गया है। जिससे सबको एक समग्र शिक्षा ग्रहण करने का विकल्प उपब्ध होग।


शिक्षा की गुणवत्ता के लिए गुणवत्तापरक शिक्षक प्रशिक्षण की महत्ता को रेखांकित करते हुए एकीकृत बीएड डिग्री पाठ्यक्रम की व्यवस्था का भी प्रावधान किया गया है। पारदर्शी आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की व्यवस्था, शिक्षकों की गरिमा को पुनः बहाल करने तथा शैक्षिक प्रशासन में भागीदारी की व्यवस्था सराहनीय है। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना / व्यवस्था सभी क्षेत्रों में शोध को बेहतर ढंग से प्रोत्साहित करने के लिए की गई है। शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रावधान किए गए हैं साथ ही शिक्षा के वित्तपोषण और नीति के कार्यान्वयन को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।


मौजूदा शिक्षा नीति के तहत भौतिक विज्ञान ऑनर्स के साथ अन्य विषय जैसे रसायन विज्ञान, गणित तो लिया जा सकता है पर फैशन डिजाइनिंग, कला, संगीत जैसे विषय नहीं लिये जा सकते हैं।

नई नीति में मेजर और माइनर की व्यवस्था होगी. जो मेजर प्रोग्राम हैं उसके अलावा माइनर प्रोग्राम भी लिए जा सकते हैं. इसके दो फायदे होंगे. आर्थिक या अन्य कारण से जो लोग ड्रॉप आउट हो जाते थे वो वापस सिस्टम में आ सकते हैं. इसके साथ जो अलग-अलग विषयों में रूचि रखते हैं, जैसे जो संगीत एवं कला में रूचि रखते हैं, पहले उसके लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. लेकिन अब नई शिक्षा नीति में मेजर और माइनर के माध्यम से ये व्यवस्था छात्रों को उपलब्ध रहेगी।


बड़े बहु-विषयक संस्थानों में 800 विश्वविद्यालयों और 40,000 कॉलेजों का एकीकरण करके अनुसंधान और शिक्षण पर समान रूप से ध्यान केंद्रित करने की बात की गई हैं। सभी विश्वविद्यालय में शिक्षण के साथ अनुसंधान को प्राथमिकता, स्वायत्त डिग्री देने वाले कॉलेज पर विशेष ध्यान सुनिश्चित किया जा रहा है सभी एशियाई विषयों और क्षेत्रों पर शिक्षण कार्यक्रमों के साथ बहू-विषयक संस्थान बनाने के लिए भौगोलिक रूप से वंचित क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाले संस्थानों को प्राथमिकता के साथ पर्याप्त सार्वजनिक निवेश करने का प्रावधान किया गया है जिससे मिशन नालंदा और मिशन तक्षशिला संस्थान खड़े किये जा सके ताकि आने वाले दिनों में हम विश्व का प्राचीन समय की भांति पुनः मार्ग दर्शन कर सके। सभी तरह की भौगोलिक अनियमितताओ को ध्यान में रखकर 2030 तक कम से कम 100 टाइप ए और 500 टाइप 2 उच्च शिक्षण संस्थान स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया हैं साथ ही 2030 तक हर जिले में कम से कम एक उच्च गुणवत्ता वाले संसथान की स्थापना की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।


वर्तमान समय में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी के माध्यम से ऑल इंडिया इंजीनियरिंग संयुक्त प्रवेश परीक्षा, मेडिकल प्रवेश परीक्षा, नीट प्रवेश परीक्षा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए एकीकृत संयुक्त प्रवेश परीक्षा का प्रावधान किया गया है.


मोदी सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक हर बच्चे के लिए सुगम शिक्षा सुनिश्चित की जाए. इसके लिए नामांकन को सत प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है. आयोग ने शिक्षकों के प्रशिक्षण पर खास जोर दिया है. जाहिर सी बात है कि एक अच्छा अध्यापक ही एक बेहतर विद्यार्थी तैयार कर सकता है. इसलिए व्यापक सुधार के लिए शिक्षक प्रशिक्षण और सभी शिक्षा से सम्बन्धी कार्यक्रमों को विश्वविद्यालयों या कॉलेजों के स्तर पर शामिल करने की पहल की गई है.


इसके अंतर्गत जहा पूर्व प्राथमिक से उच्च माध्यमिक शिक्षा तक का विनिमयन का अधिकार राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्राक्षिण परिषद् को दिया गया है तो वही उच्च शिक्षा के लिए विश्विद्यालय अनुदान आयोग की जगह उच्च शिक्षा अनुदान परिषद् की स्थापना करने की बात की गई है। इसके अंतर्गत, विधि और स्वास्थ्य को छोड़कर, विभिन्न शाखाओ का सृजन किया जायेगा जो वर्तमान में कार्यरत संगठनों का विघटन करके बनाया जाएगा।यही संगठन विनिमयन से लेकर अनुदान तक के सारे कार्य देखेगा। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत राष्ट्रिय शोध प्रतिष्ठान बनाने की बात की गई जो शोध को बढ़ावा देगा जिससे देश विश्व के साथ कदम से कदम मिलकर आगे बढ़ सके तथा अतीत की गरिमा पुनः स्थापित की जा सके।


विकसित देशो के आईवी लीग विश्वविद्यालयों की तर्ज़ पर देश में अंतरानुशासनात्मक शिक्षा और शोध विश्वविद्यालयो (मेरु) का सृजन किया जायेगा जो पारम्परिक शिक्षा प्रणाली के साथ शोध पर विशेष जोर देंगे। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत कुछ अन्य महत्वपूर्ण विषयो पर भी विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है जैसे, राष्ट्रिय शिक्षा आयोग की स्थापना, जो राष्ट्र की सर्वोच्च शैक्षणिक निकाई के रूप में कार्य करेगा इसमें देश के प्रधानमंत्री से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल रहेंगे।


अगर देश नई शिक्षा नीति को स्वस्थ और खुले मन से लागू कर सका तो निश्चित रूप से अपनी खोई हुई गरिमा पुनः हासिल करने में सफल रहेगा। देश के युवा, बाज़ारवादी संस्कृति से बाहर निकलकर भारतीय समुदायवादी संस्कृति को अपना सकेंगे, जिससे मूल्य, मान्यताये और जीवन पद्धति को अपनाते हुए एक सुखी और खुशहाल जीवन जी सकेंगे ।किसी भी देश के विकास का यही मूलमंत्र भी यही है और लक्ष्य भी। उम्मीद है आने कुछ वर्षो में देश नई शिक्षा नीति का अनुभव करेगा और वर्तमान सरकार के इस प्रयास का सराहना करेगा।


(डॉ. शान्तेष कुमार सिंह, सह प्राध्यापक, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेन्दरगढ़। डॉ. नरेश कुमार वर्मा, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षक रह चुके है।)

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