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कोरोना वैश्विक महामारी के दौर में केंद्र और राज्यों के मध्य वित्तीय संबंध

वित्तीय सहायता या केंद्र का राज्य के प्रति जो उत्तरदायित्व है| उसका सबसे बड़ा उदाहरण वैश्विक महामारी बन चुके कोविड-19 के समय देखा गया|



अमित कुमार सिंह


भारतीय लोकतंत्र में संघवाद संवैधानिक तौर पर अपने शक्ति को केंद्र और राज्य के रूप में साझा करता है| आजादी के उपरांत संघवाद का स्वरुप अब तक कई चरणों में देखने को मिला| केन्द्र के भिन्न-भिन्न सरकारों ने संघीय प्रणाली को कई स्तर पर प्रभावित किया है| आजादी के बाद सबसे पहली सरकार ने केंद्रीकृत संघवाद के एकदलीय आधिपत्य ने केंद्र सरकार को काफी मजबूत किया और उसके तुरंत बाद की सरकार ने सहयोगी संघवाद की प्रवर्ति को बढ़ावा दिया, क्योंकी केंद्र और राज्य की सरकार अलग अलग चुनौतियों के कारण एक दुसरे से टकराने की स्थिति में नही थी| फिर से एक बार इंदिरा गाँधी की सरकार का राजनैतिक एकाधिकार स्थापित हुआ| उसके बाद के राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन आया क्यों की यहाँ से लोकतंत्र में सौदेबाजी का जन्म हुआ| परन्तु 2014 में आई मोदी सरकार एक मजबूत लोकतांत्रिक सरकार के रूप में उभरी है, | जिसने केंद्र और राज्य के बिच के सम्बन्ध को बहुत मजबूत किया| इन्ही सम्बन्धो के कारण राज्य को उसके विकास के लिए की हर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई| इस आलेख मे हम कोविड महामारी के दौर मे केंद्र और राज्य के वित्तीय संबंधों का मूल्यांकन करते हुए यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार आज केंद्र और राज्य के मध्य सहयोगी संघवाद का बोलबाला है|


वित्तीय सहायता या केंद्र का राज्य के प्रति जो उत्तरदायित्व है| उसका सबसे बड़ा उदाहरण वैश्विक महामारी बन चुके कोविड-19 के समय देखा गया| पूरे विश्व के साथ भारत भी इस महामारी से लड़ रहा है| जिसके लिए भारत के हर राज्य को छोटे से बड़े चिकित्सकीय उपकरणों की आवश्यकता थी, जिससे की वो एक सफल चिकित्सकीय सुविधा को आम जनमानस को मुहैया करा सके| भारत जनसंख्या के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश हैं| इसके बावजूद भी इस वैश्विक महामारी के दौर में प्रधानमन्त्री मोदी की सरकार ने केंद्र और राज्य के बीच के एक नायाब सामंजस्य बनाकर रखा|


प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने इस वैश्विक महामारी से जंग लड़ने के लिए राज्यों को 17,287 करोड़ की आर्थिक सहायता दी| वहीं दूसरी ओर, राज्य आपदा जोखिम प्रबन्धन कोष से गृह मंत्री द्वारा 11,092 करोड़ रुपया राज्यों को देने की मंजूरी दी गई| यही नहीं वित्त मंत्रालय ने 14 राज्यों को राजस्व घाटा अनुदान के तहत 6195 करोड़ रूपये की मंजूरी दी|


इस फंड के द्वारा आइसोलेशन वार्ड की स्थापना, सैम्पल कलेक्शन, स्क्रीनिंग सेंटर की स्थापना, अतिरिक्त परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना, स्वास्थ्य सुरक्षा, सरकारी अधिकारियों के लिए सुरक्षा उपकरण की खरीद तथा एयर प्यूरीफायर से लेकर जरूरी वस्तुओं की खरीद राज्य अपने लोगों को बेहतर चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराने के लिए खरीदेगा|


केंद्र के इस सहयोग से सभी राज्य संतुष्ट दिखे तथा अपने राज्य के लिए हर जरूरी सुरक्षा उपकरण की व्यवस्था किये| कुछ राज्य पीपीई किट, मास्क, सैनीटाईजर, ग्लब्स आदि सुरक्षा उपकरण अपने राज्य के नागरिकों को मुहैया कराने के अलावा दुसरे राज्य को भी भेजे| वही वन्दे भारत मिशन के तहत चार चरणों में 53 देशों से 8.14 लाख लोगों को भारत वापस लाया जा चूका है| ये लोग भारत के अलग-अलग राज्यों से रोजगार के उद्देश्य से विदेशों में गये थे| विदेशों में कोविड महामारी के बढ़ते केसों को देखते हुए और सम्पूर्ण लाकडाउन होने के कारण केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ बैठकर ही इस “वन्दे भारत योजना” को अंतिम रूप दिया| आने वाले प्रत्येक भारतीय नागरिक का खर्च केंद्र सरकार ने ही वहन किया| वन्दे भारत योजना की शुरुआत 6 मई को की गई थी और वहीं वन्दे भारत मिशन का पांचवा चरण 1 अगस्त से शुरू हुआ|


लॉकडाउन लगने के कारण बड़े व्यापारी हो या छोटे मजदूर वर्ग जो रोजाना काम करके कमाते खाते थे| सबको दिक्कत हुई रोजगार, व्यापर सब ठप्प पड़ गया| इस संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर भारत आर्थिक पैकेज की घोषणा 5 चरणों में की जो की मजदूर वर्ग से लेकर व्यापारी वर्ग तक के लिए सहायता राशी है|


इस महामारी से किसान वर्ग भी बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है| प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने “पीएम किसान योजना” के तहत 8.5 करोड़ से अधिक किसानों के लिए 17,000 करोड़ की छठी क़िस्त जारी करने की घोषणा की| इसके अलावा एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत एक लाख करोड़ रूपये के आवंटन की भी घोषणा की| जिसमें कृषि उद्यमियों, कृषि क्षेत्र के प्रद्योगिकी कम्पनियों और कृषि सम्बन्धी स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए योजना बनायी गयी है| मोदी जी ने इस पैकेज के घोषणा के दौरान कहा था इससे गाँव-गाँव में बेहतर भंडारण और आधुनिक कोल्ड स्टोरेज की चेन तैयार हो पायेगी| साथ ही,गांवों में रोजगार के अनेक नए अवसर तैयार होंगे|

लोकतंत्र में केंद्र और राज्य दोनों में कई मुद्दों के बीच सहमती और असहमति दोनों का पक्ष बना रहता है| इसी राजनैतिक उतार चढ़ाव में जो राज्य बीजेपी शासन से बाहर हैं| उनके तथा केंद्र के बीच एक मतभेद देखने को मिला| शुरुआत में तो पश्चिम बंगाल सरकार का केंद्र से रवैया बहुत सहयोगपूर्ण रहा परन्तु कोविड के केस बढने पर केंद्र सरकार पर सहायता न करने का आरोप लगाया| जबकि बात इसके विपरीत थी| पश्चिम बंगाल में दिन पर दिन कोविड के बढ़ते केस के आंकड़े और मृत मरीजों की संख्या केंद्र सरकार के माथे पर बल दे दिया| जिससे की केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के गृह सचिव को पत्र लिखकर कोविड उपचार सम्बन्धी हालात का जायजा लेना चाहा| जबाब न मिलने पर केंद्र सरकार ने दो इंटर मिनिस्ट्रियल टीमों को कोविड सम्बन्धी ईलाज का जायजा लेने के लिए भेजा| बाद में जिस पर खूब राजनीती हुई|


पश्चिम बंगाल के अलावा केरल, पंजाब, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ के राज्य सरकार केंद्र सरकार से कोविड के दौरान किसी न किसी मुद्दे पर आक्रोशित होती हुई दिखी| खासकर के लाकडाउन से जुड़े नियम-कानून को लेकर, इन राज्यों से लगातार असहमति बनी रही| उद्योगों में काम बहाली को लेकर राज्य खुद से निर्णय लेना चाहते थे, लेकिन केंद्र सरकार ने वीडियो कोंफ्रेंसिंग करके राज्य के मुख्यमंत्रियों द्वारा सुझाव मांगकर हर राज्य की समस्याओं से खुद को अवगत कराकर उन्हें हल करने की भरपूर कोशिश की और कामयाब भी हुए| यहाँ तक की पंजाब और दिल्ली के मुख्यमंत्री तक ने राज्य का फंड खाली होने का हवाला देते हुए अपने हाँथ खड़े कर दिए और अपने यहाँ के कर्मचारियों को वेतन न देने की मजबूरी का हवाला दिया| साथ ही, पंजाब के मुख्यमत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जीएसटी का रूपये 4000 करोड़ की बकाया राशी केंद्र से न मिल पाने की बात भी रखी| इस तरह के दरार केंद्र और राज्य के मध्य तब उत्पन्न होती है जब राज्यों में केंद्र से अलग पार्टी की सरकार होती है| ऐसी परिस्थिति में केंद्र सरकार का यह उत्तरदायित्व बनता है की वो राज्य की राजस्व सम्बन्धी जरूरतों की ओर विशेष ध्यान दे| यह एक मजबूत संघीय ढांचे की नीव के लिए अपरिहार्य है|


प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने जबसे सत्ता संभाली है, तबसे हर मुद्दे पर राज्य सरकारों के साथ उसका आपसी ताल मेल निरंतर बेहतर हो रहा है| भारत के कई राज्य दुनिया के कई देशों के भौगोलिक नक्शे से बड़े हैं, इसलिए वो अपने आप को किसी भी समन्वित कार्यवाही में केंद्र से बराबर का भागीदार बनाये रखना चाहते हैं| केंद्र और राज्य के बीच सम्बन्धों में इस प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कड़वाहट खत्म करने के लिए आपसी संवाद को और प्रगाढ़ एवं पारदर्शी बनाये रखने का अथक प्रयास मोदी सरकार ने किया है| जिसमें वो कामयाब रहे हैं| एक तरह से देखा जाय तो इस महामारी के दौर में डिस्टेंसिंग की अनिवार्यता का ख्याल रखते हुए केंद राज्यों के ओर अधिक निकट आया है|


(लेखक एकेडमिक्स फॉर नेशन के साथ इन्टर्न हैं और शोध छात्र हैं)


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