Jan 21, 20203 min

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 पर बेवजह विवाद

Updated: Jan 25, 2020

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न से तंग आकर जो हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई और पारसी 31 दिसम्बर 2014 से पहले भारत आ गए हैं उनके ऊपर सीएए लागू होता है। 

डॉ अरुण कुमार

नागरिकता संशोधन अधिनियम ( सीएए ) का जो लोग विरोध कर रहे हैं उनमें रामचन्द्र गुहा, योगेन्द्र यादव जैसे विद्वान भी हैं। ये विद्वान केवल सीएए का विरोध कर रहे हैं लेकिन विरोध के समर्थन में कोई भी तर्क नहीं दे रहे। ये विद्वान केवल इतना कह रहे हैं कि यह अधिनियम संविधान के खिलाफ है। ऐसा नहीं है कि इन विद्वानों को सीएए के बारे में पता नहीं है। वे सब जानते हैं कि किसी भी देश का संविधान वहां के नागरिकों पर लागू होता है और यह अधिनियम विदेशी नागरिकों के लिए है। भारतीय नागरिक पूर्व की भांति स्वतन्त्र हैं और यह अधिनियम उनके अधिकारों को किसी भी तरह से कम नहीं कर रहा है। इनमें मुस्लिम भी शामिल हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न से तंग आकर जो हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई और पारसी 31 दिसम्बर 2014 से पहले भारत आ गए हैं उनके ऊपर सीएए लागू होता है। 

कुछ लोग संविधान को धर्म ग्रंथ बनाने पर तुले हैं। जबकि संविधान एक जीवन्त दस्तावेज है जिसमें देशकाल और परिस्थितियों के अनुरूप बदलाव जरूरी है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए भी यह जरूरी है। सीएए भी उसी बदलाव का वाहक है जो गैर-कानूनी ढंग से घुसपैठ करने वालों पर लगाम लगाएगा।

इस अधिनियम को मुसलमानों के खिलाफ कहा जा रहा है। जबकि यह दुष्प्रचार है। किसी भी समुदाय के व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए वर्तमान कानूनी प्रक्रिया 'प्राकृतिकरण' ( नागरिकता अधिनियम की धारा- 6 ) या पंजीकरण  ( नागरिकता अधिनियम की धारा- 5 ) का पालन करना होगा। सीएए इनमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं करता। कोई मुसलमान भी इन अधिनियमों के तहत भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है।

संगीतकार अदनान सामी जैसे कई पाकिस्तानी भी नागरिकता लेकर भारत में रह रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सीएए लागू होने के बाद उन्हें भारत छोड़ना पड़ेगा। अदनान सामी ने पाकिस्तानी नागरिकता का परित्याग कर भारतीय नागरिकता ग्रहण की है। जब अदनान सामी भयभीत नहीं हैं तो जामिया या फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी क्यों भयभीत हैं? विरोध करने वालों को पता ही नहीं कि वे क्यों विरोध कर रहे हैं। विडम्बना यह है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले विद्वान भी उन्हें कुछ भी नहीं बता रहे। 

दरअसल, सीएए 'शरणार्थियों' और 'घुसपैठियों' में अंतर स्पष्ट कर रहा है। ‘शरणार्थी किसी देश के शोषण-उत्पीड़न या जीवन जीने की न्यूनतम सुविधा के अभाव में किसी दूसरे देश में शरण लेना चाहते हैं जबकि घुसपैठिए गलत कार्यों और तरीकों से दूसरे देश में प्रवेश कर जाते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि इन देशों में बड़ी तेजी से धार्मिक अल्पसंख्यकों की जनसंख्या घटी है। इन देशों से लोग धार्मिक शोषण से तंग आकर भारत में शरण लेने आते हैं। सीएए इन शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की पहल करता है।

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान ये तीनों देश इस्लामिक देश हैं। यहां इस्लाम धर्म को मानने वालों पर किसी भी तरह के धार्मिक भेदभाव का प्रश्न नहीं है। इसीलिए यदि यहां से आने वाले मुसलमान किसी धार्मिक शोषण से तंग आकर नहीं बल्कि अवैध घुसपैठियों के रूप में भारत आते हैं। सीएए इन्हीं लोगों को भारत आने से रोकेगा। जो मुसलमान भारत की नागरिकता लेना चाहते हैं वे नागरिकता अधिनियम की धारा 5 और 6 के तहत आवेदन कर सकते हैं। पिछले वर्षों में उक्त तीनों देशों से पलायन करके आनेवाले सैकड़ों मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता दी गई है। योग्य पाए जाने पर आगे भी सभी प्रवासियों को उनकी संख्या या धर्म की परवाह किए बगैर भारत की नागरिकता दी जाएगी।

भारत में नागरिकता प्राप्त करने के पांच तरीके हैं- भारत में जन्म से, वंश के आधार पर, पंजीकरण के माध्यम से, प्राकृतिकरण ( भारत में विस्तारित निवास ) से और भारत में किसी क्षेत्र विशेष के शामिल होने से। इन पांच तरीकों से कोई मुसलमान भी भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। यहां भारतीय मुसलमानों के मन में भी यह भय बैठाया जा रहा है कि सीएए उनकी भी नागरिकता छीन लेगा।

जो लोग सीएए के विरोध में हंगामा कर रहे हैं या उससे भयभीत हैं उन्हें इतनी सी बात समझने की कोशिश करनी चाहिए। आंदोलनकारियों से विनम्र निवेदन है कि पहले अधिनियम को पढ़ें उस पर विमर्श करें, फिर जरूरत महसूस करें तो शांतिपूर्ण आंदोलन करें। लोकतंत्र में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने से आपको कोई नहीं रोक रहा है। अगर जरूरी लगे तो अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है लेकिन हिंसक प्रदर्शन किसी बी समस्या का हल नहीं है।

(लेखक ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी की है। वर्तमान में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)

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